ए- चांद...
तुने भी क्या गज़ब का ज़ुल्म ढाया है
दिवाना हमे बनाकर खुद को बादलों में छिपाया है
पास तेरे सितारे हजार...
याराने मेरे भी बेशुमार...
फिर भी हमनें खुद को तन्हा ही पाया हैं
तन्हाई में भी नुर बरसाना तुने ही सिखाया है
कभी होता है पुरा कभी अधुरा ही आया है
अधुरेपन में भी चमकना तुने ही सिखाया है
हयात की तपती आग ने जब भी हमे जलाया है
तेरी ही शीतल छाया में हमने सुकुन पाया है
अपनी चांदनी बांटकर तुने तिमिर को भगाया है
फिर भी तुझमें दाग़ है ये दुनियाँ ने सुनाया है
कभी कभी हमने खुद को तुझसा ही पाया है
मुस्कुराहटें बांटकर खुद को अकेले में रुलाया है
"ए- चांद" तुने भी क्या गज़ब का ज़ुल्म ढाया है
दिवाना हमे बनाकर खुद को बादलों में छिपाया है
Zazbaaton ki diary...
Rao Hetal...
#Moon ए - चांद...🌙