टूटा हुआ इंसान
समेट लेता है ख्वाहिशों को
और भूल जाता है अभिमान,
इंसान कहा रह जाता है
एक टूटा हुआ इंसान।
आँशुओ का घूँट पी पी कर
सागर बन जाता है।
छिपा सके हर गम जिसमें
वह चादर बन जाता है।
आंखों का पानी पोछ कर
मुस्कुराना सिख जाता है
हर परिस्थिति और हर हाल में
खुद को ढालना सिख जाता है
हस्ती तो मिट जाती है
बस बच जाती है एक जान,
इंसान कहाँ रह जाता है
एक टूटा हुआ इंसान।
औरों के मुस्कान के पीछे छिपा दर्द पढ़ लेता है,
अपने जीवन को दूसरों के लिए समर्पण कर देता है।
ईर्ष्या-स्पर्द्धा छोड़ सबका हमदर्द बन जाता है,
अपनों की जिम्मेदारियाँ उसका फ़र्ज़ बन जाता है
'मैं' और 'हम' का भेद समझ
पा लेता है आत्म- ज्ञान,
इंसान कहा रह जाता है
एक टूटा हुआ इंसान।
©Priti Dwivedi
#aaina