छत पर की यादों को हम कैसे भुला सकते है।
शायद ही अब कभी हम ऐसे समय बिता सकते है ।
मां के साथ हम सब छत पर बैठा करते थे,
कभी मां की बातो को सुनते तो कभी आपस में लड़ा करते थे।
कभी आंकते कौन आ रहा दूर से ,
तो कभी ऑटो को रुकने का शर्त जीत जाते गुरुर से।
और मजा तो तब आता था जब पापा दिख जाते थे ,
वही खत्म होती थी सभा फिर कल बैठक बुलाते थे।
©Kanak Tiwari