कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू
क्यु मैं कुछ बता नहीं सकती
अपने ऐहसास जता
नहीं सकती
होंठो तक आये शब्द जुबान से लिपट
जाते है चाह के भी हम हाले
दिल बया नहीं कर
पाते है
अफसोस की आँधी आज भी मन
को झकझोरती है मुझे टुकडों
मे बिखेर के हस्ते हुए
संवरती है
काश मैं वक़्त को रोक पाती अपने
तकदीर का फैसला अंजाम
तक लाती
कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू
मैं क्यु ऐसी हू............
©chandni