कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू क्यु मैं कुछ बता | English Poetry

"कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू क्यु मैं कुछ बता नहीं सकती अपने ऐहसास जता नहीं सकती होंठो तक आये शब्द जुबान से लिपट जाते है चाह के भी हम हाले दिल बया नहीं कर पाते है अफसोस की आँधी आज भी मन को झकझोरती है मुझे टुकडों मे बिखेर के हस्ते हुए संवरती है काश मैं वक़्त को रोक पाती अपने तकदीर का फैसला अंजाम तक लाती कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू मैं क्यु ऐसी हू............ ©chandni"

 कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू
क्यु मैं कुछ बता नहीं सकती
अपने ऐहसास जता
नहीं सकती

होंठो तक आये शब्द जुबान से लिपट
जाते है चाह के भी हम हाले 
दिल बया नहीं कर 
पाते है 

अफसोस की आँधी आज भी मन 
को झकझोरती है मुझे टुकडों 
मे बिखेर के हस्ते हुए 
संवरती है 

काश मैं वक़्त को रोक पाती अपने
तकदीर का फैसला अंजाम 
तक लाती 

कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू
मैं क्यु ऐसी हू............

©chandni

कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू क्यु मैं कुछ बता नहीं सकती अपने ऐहसास जता नहीं सकती होंठो तक आये शब्द जुबान से लिपट जाते है चाह के भी हम हाले दिल बया नहीं कर पाते है अफसोस की आँधी आज भी मन को झकझोरती है मुझे टुकडों मे बिखेर के हस्ते हुए संवरती है काश मैं वक़्त को रोक पाती अपने तकदीर का फैसला अंजाम तक लाती कभी कभी सोचती हू मैं क्यु ऐसी हू मैं क्यु ऐसी हू............ ©chandni

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