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मैं मिल चुका हूं अहंकार से भरे घड़ों से ....
जो सिर्फ़ दिमाग़ी पैदल है ना की धड़ों से...
कुछ लोगों को सूरज की रौशनी क्या मिली,,,,,
मानो सूरज ही मिल गया लगता है गुणों से.....
पेड़ आगे क्या ही टिटेंगे आंधियों के समक्ष ,,,
जो कमज़ोर तने से नहीं बल्कि है जड़ों से.....
तौर तरीका नहीं आता तो सीखना चाहिए,,,,
ज्ञान किताब से नहीं बल्कि सीखो बड़ों से....
वो प्रेम चाहता है ना की लाभ का भूखा हे,,,
जिसने खुद कमाया है मांगा नही है घरों से...
आज हरे भरे हो तो छांव देना सीखो पुनीत,,,
पृथ्वी गोल है यही सामना होगा पतझड़ो से...
पुनीत कुमार नैनपुर
©punit shrivas
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