White ◆◆ जीवन-मृत्यु की समांतर रेखाएँ ◆◆
समांतर रेखाएँ कहाँ मिलती होंगी?
एक-दूसरे के नजदीक से गुजरते हुए
उनके ख्याल तो मिलते ही होंगें
अनंत बिन्दु पर एकसार होने से कहीं पहले।
दोनों के दरम्यां जो जगह है वो खालीपन से
भरी तो लगती है, ध्यान से देखो!
दो पटरियाँ हैं, समानांतर बढ़ती यात्रा में
जानते हुए की साझा करेंगी रेल का वजन।
फिर! भी उस मिलन के इंतजार में झगड़ती सी लगती है
एक-दूसरे को काटती, मिलती फिर अचानक
दूर होती सी..जैसी सौतनें।
दो छोरों को जोड़ने वाली राहों में ऐसे टकराव
जिंदगी के भी दो छोर हैं,
पहला, जहाँ आत्म को एक रूप मिलता है
ब्रम्हा से कुछ अलग, और जन्म लेती हैं सम्भवनायें
निराकार से साकार निकलता है
बिलख उठती है इकाई संरक्षण खोकर
हर एक रचना का जो सबसे सशक्त उपमान है।
दूसरा, जहाँ सम्भवनाएँ नियति से मिलती है
और किताब के अंतिम पन्ने जैसी संतुष्टि लिए रहती है, आत्म और परमात्म अलग नही रहते हैं।
सार्थकता और निरर्थकता की बहस मायने खोने लगती है
समय में गोधूलि वेला के धूसर रंग मिलने लगे हैं
घर चलें, ब्रम्हा में लीन होने का समय है
चलो! पटाक्षेप।
इन्ही दोनो छोरों के बीच
हम बांधकर एक डोरी और उस पर चढ़कर
फासला तय करने का प्रयास करते हैं।
कई बार देखने वाले तालियाँ खूब बजाते हैं
जहाँ दर्शकों के आनन्द के लिए
एक पैर से रस्सी पार करने से पहले
एक पल भी नही सोचते हैं।
वो जो डोरी कहीं उलझी हुई रखी है
उसे देखने कौन जाता है?
इस खेल का नाम जानते हो?
मैंने कहा- जीवन।
अब अलग होकर देखो!
जन्म एक घटना है
मृत्यु एक घटना है
जीवन जो बहुत बड़ा लगता है
वो भी एक घटना है
और, ब्रम्हा के ब्रम्हाण्ड में ऐसी घटनायें होती रहती हैं।।
-✍️ अभिषेक यादव
©Abhishek Yadav
#GoodNight