जिस से भी मिलो आज, परेशान बहुत है !! खुद में ही खु

"जिस से भी मिलो आज, परेशान बहुत है !! खुद में ही खुद से उलझा, इंसान बहुत हैं !! ऐ जिंदगी तू ले लाई, हमे किस मोड़ पे, जहाँ हँसने के कम,और रोने के सामान बहुत हैं ! अब न दुआ, न दवाओं का असर हो रहा हैं, टूटा दिल हैं, और जख्मो के निशान बहुत हैं !! हमने देखीं हैं अमीरी को परेशां हाल में अक्सर, सच कहता हूँ मुफ़लिसी में इत्मिनान बहुत हैं !! जिन होंठो पे खेलती थी मुस्कराहट कल तलक, वो दयारे-बज़्म रंजोगम से, वीरान बहुत हैं !! घट रही आबादी रोज ब रोज इंसानों की यूँ तो मुल्क में अपने हिन्दू ,मुसलमान बहुत हैं !! ©pragati tiwari"

 जिस से भी मिलो आज, परेशान बहुत है !!
खुद में ही खुद से उलझा, इंसान बहुत हैं !!

ऐ जिंदगी तू ले लाई, हमे किस मोड़ पे,
जहाँ हँसने के कम,और रोने के सामान बहुत हैं !

अब न दुआ, न दवाओं का असर हो रहा हैं,
टूटा दिल हैं, और जख्मो के निशान बहुत हैं !!

हमने देखीं हैं अमीरी को परेशां हाल में अक्सर,
सच कहता हूँ मुफ़लिसी में इत्मिनान बहुत हैं !!

जिन होंठो पे खेलती थी मुस्कराहट कल तलक,
वो दयारे-बज़्म रंजोगम से, वीरान बहुत हैं !!

घट रही आबादी रोज ब रोज इंसानों की
यूँ तो मुल्क में अपने हिन्दू ,मुसलमान बहुत हैं !!

©pragati tiwari

जिस से भी मिलो आज, परेशान बहुत है !! खुद में ही खुद से उलझा, इंसान बहुत हैं !! ऐ जिंदगी तू ले लाई, हमे किस मोड़ पे, जहाँ हँसने के कम,और रोने के सामान बहुत हैं ! अब न दुआ, न दवाओं का असर हो रहा हैं, टूटा दिल हैं, और जख्मो के निशान बहुत हैं !! हमने देखीं हैं अमीरी को परेशां हाल में अक्सर, सच कहता हूँ मुफ़लिसी में इत्मिनान बहुत हैं !! जिन होंठो पे खेलती थी मुस्कराहट कल तलक, वो दयारे-बज़्म रंजोगम से, वीरान बहुत हैं !! घट रही आबादी रोज ब रोज इंसानों की यूँ तो मुल्क में अपने हिन्दू ,मुसलमान बहुत हैं !! ©pragati tiwari

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