War and Peace याद रहे ये कुरवानी...............
उस दिन सोने का समय था,नींद एक सवाल बनकर आयी थी
बो रात मुझे याद है,जो काल बनकर आयी थी
अनजान थे हर हमले से,आगे बढ़ ही रहे थे हम
देश का मान बढ़ाने को हम बढ़ा रहे थे अपने कदम
जान की बाज़ी लगा दी हमने बिखर गया था हर कतरा
अन्तिम सांस बची थी,निकाल रहे थे उनका दम
सपने सजाए थे मैंने भी कि घर अपने जब जाऊंगा
इस लॉकडाउन में अपने घर मैं दुल्हन प्यारी लाऊंगा
मां के पांव दबाकर के जब मेरे पास वो आयेगी
प्यार से हाथ सहलाऊंगा सिर पर जब तक नींद ना आयेगी
एक नया घर होगा मेरा,जहां सब आराम फरमाएंगे
उस दिन का इंतजार था मुझे, जब सब मिलकर खाना खायेंगे
चाह थी बेटी की मुझे, बड़ा भाई भी मेरा कम ना था
साथ जब भी बैठते थे, दुनिया में कोई हमसा ना था
सारे सपने टूट गए, छूट गया मां का काजल
सिर पटक पटक। के रो रही है,जैसे कोई बूढ़ी पागल
पिता के आंशू सूख गए है जैसे, उनका सूरज ढल गया
देख रहा हूं मैं भी सबकुछ,मेरा शरीर है जल गया
देश की सेवा करने को , मैं जब हुआ फ़ौज में भरती
आज संगीन पर रखा है माथा मेरा, चूम रहा हूं अपनी धरती
.................सूरज
याद रहे ये कुरवानी