पल्लव की डायरी
पगडंडिया थी गांव तक
शहरों में मुकाम ना थे
खेती बाड़ी काम थे
फसलो के दाम ना थे
कभी बे मौसम बरसात ओलो से
कभी सूखा से प्रभावित थे
कर्जो में डूबे रहे जीवन
कभी बगावती सुर ना थे
खो रहे से अपनी पहचान
मगर जोत बचाये हुये थे
लेकिन इन तीन कानूनों में
हमारे डेथ वारेंट थे
कैसे ना घेरते दिल्ली को
जन जन की रोटी पर
लगने वाले सरकारी ताले थे
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
जन जन की रोटी पर लगने वाले ताले थे