मैं ना ही नूर हूँ, ना गुरूर हूँ। ना ही किसी का फ़

"मैं ना ही नूर हूँ, ना गुरूर हूँ। ना ही किसी का फ़ितूर हूँ।। ना शकीब हूँ, ना रकीब हूँ। न ही मैं किसी का नसीब हूँ।। ना ही चैन हूँ, ना क़रार हूँ। मैं तो फ़स्ल-ए-बहार हूँ।। ना कोई मुत्तसिल, ना कोई मुर्तजा। मैं तो मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ।। ना किसी का ख़्वाब हूँ, ना ताबीर हूँ। मैं तो अदना सा बशीर हूँ।। ना ही शायर हूँ, ना फ़कीर हूँ। जीवन रेत पर खींची एक लकीर हूँ।। हो जानना मुझे, तो इतना समझ। हूँ मैं शुन्य, पर मशहूर हूँ।। किसी के करीब हूँ, किसी से दूर हूँ। किसी के इश्क में मखमूर हूँ।। ©P Prashun Mishra"

 मैं ना ही नूर हूँ, ना गुरूर हूँ। 
ना ही किसी का फ़ितूर हूँ।।
ना शकीब हूँ, ना रकीब हूँ।
न ही मैं किसी का नसीब हूँ।।
ना ही चैन हूँ, ना क़रार हूँ। 
मैं तो फ़स्ल-ए-बहार हूँ।।
ना कोई मुत्तसिल, ना कोई मुर्तजा।
मैं तो मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ।।
ना किसी का ख़्वाब हूँ, ना ताबीर हूँ।
मैं तो अदना सा बशीर हूँ।।
ना ही शायर हूँ, ना  फ़कीर हूँ। 
जीवन रेत पर खींची एक लकीर हूँ।।
हो जानना मुझे, तो इतना समझ।
हूँ मैं शुन्य, पर मशहूर हूँ।।
किसी के करीब हूँ, किसी से दूर हूँ। 
किसी के इश्क में मखमूर हूँ।।

©P Prashun Mishra

मैं ना ही नूर हूँ, ना गुरूर हूँ। ना ही किसी का फ़ितूर हूँ।। ना शकीब हूँ, ना रकीब हूँ। न ही मैं किसी का नसीब हूँ।। ना ही चैन हूँ, ना क़रार हूँ। मैं तो फ़स्ल-ए-बहार हूँ।। ना कोई मुत्तसिल, ना कोई मुर्तजा। मैं तो मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ।। ना किसी का ख़्वाब हूँ, ना ताबीर हूँ। मैं तो अदना सा बशीर हूँ।। ना ही शायर हूँ, ना फ़कीर हूँ। जीवन रेत पर खींची एक लकीर हूँ।। हो जानना मुझे, तो इतना समझ। हूँ मैं शुन्य, पर मशहूर हूँ।। किसी के करीब हूँ, किसी से दूर हूँ। किसी के इश्क में मखमूर हूँ।। ©P Prashun Mishra

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