उससे मुलाकात हुए तो 1 साल और 70 दिन बीत चुके है, मगर फेसबुक पर उसे देखने दिन के 8 आठों पहर जाते है हम। कुछ मिलता नही है सिवाए तकलीफ के, मगर ये आदत कुछ ऐसी है कि छोड़ भी नही पा रहा हूँ मैं। उसे देखते हुए अनजाने सपनों में आज भी खो जाता हूँ, एक पल याद भी नही रहता कि वो अब किसी और कि बन चुकी है। सहसा दिमाग मे ये बात उठती है और फ़ोन के बैक होने का बटन इतनी जोर जोर से दबाते है जैसे कोई गुनाह कर दिया हो और भागने के लिए दरवाजा खोल रहे हो। जब पूरी तरह बैक हो जाते है तो फ़ोन साइड में रख कर सर पकडते हुए इस बीते हुए साल के सारी घटनाएं एक एक करके आँखों के सामने नाचने लगती है। दिल जोरों से धड़कने लगता है, और न चाह कर भी आंखों से आंसुओ की लड़ी छूट जाती है । रात के अंधेरों में खुद को खुद ही संभाल के कहना पड़ता है " जो हुआ अच्छा हुआ वो खुश है अब उसके साथ, उसकी खुशी के लिए ही तो मानी थी उसकी सारी जिदें बस इसी उधेड़बुन में रात बीत जाती है ।
सुबह होते ही वापस इस जिंदगी में खो जाते है
मगर भूल जाते है फिर शाम होगी फिर रात होगी और फिर ये कारवाँ चलता रहेगा, चलता रहेगा, चलता ही रहेगा ।
©Anirudh Tyagi
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