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हम खाक़ से बने हैं खाक़े वतन हमारा
बा-दिल-ओ- जां से अफ़ज़ल अर्ज़े ज़मन हमारा
अर्ज़ो समा से बर तर है सेह रंगी अपना
ना उर्दू ना ही हिंदी रश्क़े चमन हमारा
आँसा नहीं यहाँ से जाना यहाँ पे आना
मर्ग-ए-अबद बिछा है खाक़े कफ़न हमारा
मालूफ़ -ए- वतन जब ये इंक़लाब पर था
फिर भी हशम यहीं था बाग़े अदन हमारा
अज़मत तु ही है तुझपर मेरा निसार सब कुछ
बे - मिस्ल सरफ़राज़ी मुल्क़े वतन हमारा
गुल बू "ज़ुबैर" इसकी हर शहर शहर में है
कितना हसींन दिलकश फर्श-ए-चमन हमारा
लेखक - ज़ुबैर खान......✍️'
©SZUBAIR KHAN KHAN
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