गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था मेरा और उस का | हिंदी शायरी
"गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था
मेरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था,
लहू-चशीदा हाथ उस ने चूम कर दिखा दिया
जज़ा वहाँ मिली जहाँ कि मरहला सज़ा का था...."
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था
मेरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था,
लहू-चशीदा हाथ उस ने चूम कर दिखा दिया
जज़ा वहाँ मिली जहाँ कि मरहला सज़ा का था....