मुझे सजना संवरना कम ही पसंद हैं, में आईने से भी थो | हिंदी Poetry

"मुझे सजना संवरना कम ही पसंद हैं, में आईने से भी थोड़ी दूरी रखती हूं, नरम लहज़ा ,मीठी बाते पसंद है , मुझे भी मगर , दिखावटीपन से ज्यादा परहेज़ रखती हूं।। साथ सबका अच्छा लगता है मगर , झूठे वादों का बोझ कम ही रखती हु, तुम मुझे मेरे लहजे से ही परखना, क्योंकि में याद लोगों के वक्त पर बदलते रवैये रखती हूं।। ©Monika Dhangar(RaahiKeAlfaaz)"

 मुझे सजना संवरना कम ही पसंद हैं,
में आईने से भी थोड़ी दूरी रखती हूं,
नरम लहज़ा ,मीठी बाते पसंद है ,
मुझे भी मगर ,
दिखावटीपन से ज्यादा परहेज़ रखती हूं।।
साथ सबका अच्छा लगता है मगर ,
झूठे वादों का बोझ कम ही रखती हु,
तुम मुझे मेरे लहजे से ही परखना,
क्योंकि में याद लोगों के
 वक्त पर बदलते रवैये रखती हूं।।

©Monika Dhangar(RaahiKeAlfaaz)

मुझे सजना संवरना कम ही पसंद हैं, में आईने से भी थोड़ी दूरी रखती हूं, नरम लहज़ा ,मीठी बाते पसंद है , मुझे भी मगर , दिखावटीपन से ज्यादा परहेज़ रखती हूं।। साथ सबका अच्छा लगता है मगर , झूठे वादों का बोझ कम ही रखती हु, तुम मुझे मेरे लहजे से ही परखना, क्योंकि में याद लोगों के वक्त पर बदलते रवैये रखती हूं।। ©Monika Dhangar(RaahiKeAlfaaz)

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