सच्चाई की चाबुक या
मखमली बि छोना मिथ्या का
चुनना, तजना अपने हाँथो
कल भी था और कल भी होगा.
एक ही माटी एक ही अंकुर
प्रसफुटित मोह के कुसुम चुने
या त्याग रुपी कंटक चुभना
दुर्बल या ताकतवर होना
है सबकुछ अपने हाँथो में
कल भी था और कल भी होगा
हे!धन्य धरा जिस पर जन्मी
श्रद्धा रुपी नारी पावन
माँ दुर्गा के दस हाँथो का
बल लिए वरन अबला का मन
अब सबल शक्ति दुर्गा या
अबला बनना तेरे हाँथो में
कल भी था और कल भी होगा
तेरा बचपन, यौवन हठपन
परिनीता बने खुद को तजके
बन गईं किसी की दुनिया तू
सांसे अपनी अर्पण करके
जीवन को जड़ -चैतन में से
चैतन चुनना तेरे हाँथो
कल तक भी था कल भी होगा
फिर क्यों आखिर तेरी आंखे
हों शर्मिंदा?
जीवन अर्पण करने वाली
तेरा जीवन होगा ज़िंदा
जो कल भी था हर पल होगा
💚
©Priya Dubey
#samay poetry