जहाँ कदर न हो अपनी वहाँ जाना फ़िज़ूल है,  चाहे किसी

"जहाँ कदर न हो अपनी वहाँ जाना फ़िज़ूल है,  चाहे किसी का घर हो चाहे किसी का दिल।"

 जहाँ कदर न हो अपनी वहाँ जाना फ़िज़ूल है, 
चाहे किसी का घर हो चाहे किसी का दिल।

जहाँ कदर न हो अपनी वहाँ जाना फ़िज़ूल है,  चाहे किसी का घर हो चाहे किसी का दिल।

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