White सितारों की रोशनी, नहीं वैसी हसीं रही। मिट्टी | हिंदी कविता

"White सितारों की रोशनी, नहीं वैसी हसीं रही। मिट्टी की खुश्बू भी लगे, जमीं धंसी रही। जल रहा चिराग, हवा से रहा भयभीत, बिन तेल जली बाती कैसी बेबसी रही। मयकश का मजा लुटती रहीं है बोतलें, शुरुआत से भीतर जिनके मयकशी रही। हम तो तरस रहे हैं, किसी शाम जाम हो, अब शाम में कोहराम, कैसे बदनसी रही। तुम छू सको मुझे, तो हाथ देना अन्त में, मुझको छुआ है छूत ने, कुछ दोस्ती रही। लाखों पले जोअरमां, आज बुझ गए सभी, "दीपक" तुम्हारी जिंदगी, क्या जिंदगी रही। ©Dr. Parwarish"

 White सितारों की रोशनी, नहीं वैसी हसीं रही।
मिट्टी की खुश्बू भी लगे, जमीं धंसी रही।

जल रहा चिराग, हवा से रहा भयभीत,
बिन तेल जली बाती कैसी बेबसी रही।

मयकश  का  मजा  लुटती रहीं है बोतलें,
शुरुआत से भीतर जिनके मयकशी रही।

हम तो तरस रहे हैं, किसी शाम जाम हो,
अब शाम में कोहराम, कैसे बदनसी रही।

तुम छू सको मुझे, तो हाथ देना अन्त में,
मुझको छुआ है छूत ने, कुछ दोस्ती रही।

लाखों पले जोअरमां, आज बुझ गए सभी,
"दीपक" तुम्हारी जिंदगी, क्या जिंदगी रही।

©Dr. Parwarish

White सितारों की रोशनी, नहीं वैसी हसीं रही। मिट्टी की खुश्बू भी लगे, जमीं धंसी रही। जल रहा चिराग, हवा से रहा भयभीत, बिन तेल जली बाती कैसी बेबसी रही। मयकश का मजा लुटती रहीं है बोतलें, शुरुआत से भीतर जिनके मयकशी रही। हम तो तरस रहे हैं, किसी शाम जाम हो, अब शाम में कोहराम, कैसे बदनसी रही। तुम छू सको मुझे, तो हाथ देना अन्त में, मुझको छुआ है छूत ने, कुछ दोस्ती रही। लाखों पले जोअरमां, आज बुझ गए सभी, "दीपक" तुम्हारी जिंदगी, क्या जिंदगी रही। ©Dr. Parwarish

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