'अधर' तो अधीर होते हैं
हृदय जिनके सुदृढ़ होते हैं
'पीर' की 'पीर' को
यहाँ कौन जान पाता है
कौन किसका होता है
कौन किसके लिए जीया है
हो कोई भी पीड़ा किसी को
पीड़ा को उसने ही सहा है
नीर नहीं पीर है उसकी
अंखियों से जो जल बहा है
वो कौन है? कैसा है?
ये विचार नहीं रहता है
प्रसन्नचित्त मुख ध्यान रहता है
कितना अच्छा है वो
सदा प्रसन्न रहता है
इतनी ही है सांसारिक समझ
संसार बस यही कहता है।।
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