रात भर असंख्य तारों के बीच बैठा वो चांद मुझे निहारता रहा ।
अपनी चुप्पी में ही मुझसे कुछ बतियाते रहा।
उस रात की बात याद है मुझे, मैंने सुना उसे जो कहा उसने,
महसूस तो बादलों ने भी किया , मगर फुरसत कहां थीं उसे,
वो तो हवाओं के संग अठखेलियों में मसरूफ़ रहा।
साथ तो जुगनुओ ने भी ना दिया था,
रात भर वो चांद खामोश लब्जो से कुछ कहता रहा।
यकीं दिलाऊं भी तो कैसे ,
उस रात का गवाह तो बस तन्हाई ही रहा।
©shatakshi bhardwaj
चांद और मै।
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