फ़िर न जाने किस, हौसले में जी रहे थे हम
जब रकीबों के घोंसले में जी रहे थे हम
खुदकी आवाज़ों का, खुदी पर था असर नहीं
खुदसे भी काफ़ी फासले में जी रहे थे हम
वो तो ऐसे भागा, गोया पिंजरे में था
उसके ही तो हर फ़ैसले में जी रहे थे हम
फ़िर न जाने किस, हौसले में जी रहे थे हम
जब रकीबों के, घोंसले में जी रहे थे हम
खुदकी आवाज़ों का, खुदी पर था असर नहीं
खुदसे भी काफ़ी, फासले में जी रहे थे हम
वो तो ऐसे भागा गोया पिंजरे में था
उसके ही तो हर फ़ैसले में जी रहे थे हम