सफर जारी है मेरा एक नई शुरुआत है,
साँसे अटकती हैं वो जब करती बात है,
इस दफा फिर हमें हुस्न पर प्यार आया,
ऐ-मोहब्बत क्या रह गयी तिरी औकात है,
जो पला हो अंधेरों में उसका है यही मसला,
जख्म देते है उजाले और मरहम हर रात है,
दी अज़ीयत जिसने घर की कच्ची छत को,
क्यों अचानक अच्छी लगने लगी वो बरसात है.
यू तो नहीं के मौत का ख़ौफ़ ही मर गया,
जो हो रही इकठ्ठा हौंसलो की तादात है.
©rana shayar
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