उसे आज भी नहीं पता, चांद को चाहता चकोर,
रातों में चुपके से, देखता है उसका नूर भरपूर।
अधखुली आंखों से, सपनों में बुनता है बात,
चांदनी की रौशनी में, लिखता है अपनी सौगात।
दूर से ही करता है, अपने प्रेम का इज़हार,
उसकी हर किरण में, देखता है अपना प्यार।
दिल की बातें छुपा के, वो रहता है बेसब्र,
उसे आज भी नहीं पता, चांद को चाहता चकोर।
रात की खामोशी में, उसका दिल है बेकाबू,
चांदनी की चादर में, खोजता है वो सुकून।
सदियों से चलता है ये प्रेम का अफसाना,
उसे आज भी नहीं पता, चांद को चाहता चकोर।
©Balwant Mehta
#Moon