बिकती है ना खुशी कहीं , ना कहीं गम बिकता है .... | हिंदी कविता
"बिकती है ना खुशी कहीं ,
ना कहीं गम बिकता है ....
लोग गलतफहमी में है ,
कि शायद कहीं मरहम बिकती है ....
इंसान ख्वाईशो से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है ,
उम्मीदों से ही घायल है और ,
उम्मीदों पर ही जिंदा है .......!"
बिकती है ना खुशी कहीं ,
ना कहीं गम बिकता है ....
लोग गलतफहमी में है ,
कि शायद कहीं मरहम बिकती है ....
इंसान ख्वाईशो से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है ,
उम्मीदों से ही घायल है और ,
उम्मीदों पर ही जिंदा है .......!