*हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा......! तुम् | हिंदी कविता

"*हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा......! तुम्हारी खुबसूरती को कर सके बयान हमेशा ओ शब्द बनना चाहा, अपनी ज़िंदगी को फटे पन्ने बनाकर तुम्हारी पन्नो को शब्दों से सजाना चाहा , तुम्हें सादगी पसंद मैंने महकने चाहा हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...! इनकार की डर से इज़हार नहीं किया था, प्यार हो बहोत करता था मगर इकरार नहीं किया था... खोल दिए दिल के दरवाजे अरमानों को यूंही शब्दों से बहाया , परिणामों की परवाह किसे थी हम तो चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...! बड़ी मुश्किल से कायनाथ से चुराकर बड़ी शिद्दत से सिर्फ तुम्हे ही चाहा, दिल पर बड़ा सा पत्थर रखकर अरमानों की श्रृंगार की तरह सजाया. फिर भी तूने समझा ही नहीं और ना ही समझना चाहा हम चाहते ही क्या तुमसे तुम्हारे सिवा.....! Pandhari Varpe 8698361992 ©Varpe Pandhari"

 *हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा......!

तुम्हारी खुबसूरती को कर सके बयान
हमेशा ओ शब्द बनना चाहा,
अपनी ज़िंदगी को फटे पन्ने बनाकर
तुम्हारी पन्नो को शब्दों से सजाना चाहा ,
तुम्हें सादगी पसंद मैंने महकने चाहा
हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...!

इनकार की डर से
इज़हार नहीं किया था,
प्यार हो बहोत करता था
मगर इकरार नहीं किया था...
खोल दिए दिल के दरवाजे
अरमानों को यूंही शब्दों से बहाया ,
परिणामों की परवाह किसे थी 
हम तो चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...!

बड़ी मुश्किल से कायनाथ से चुराकर 
बड़ी शिद्दत से सिर्फ तुम्हे ही चाहा,
दिल पर बड़ा सा पत्थर रखकर
अरमानों की श्रृंगार की तरह सजाया.
फिर भी
तूने समझा ही नहीं और
ना ही समझना चाहा
हम चाहते ही क्या तुमसे तुम्हारे सिवा.....!


      Pandhari Varpe
       8698361992

©Varpe Pandhari

*हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा......! तुम्हारी खुबसूरती को कर सके बयान हमेशा ओ शब्द बनना चाहा, अपनी ज़िंदगी को फटे पन्ने बनाकर तुम्हारी पन्नो को शब्दों से सजाना चाहा , तुम्हें सादगी पसंद मैंने महकने चाहा हम चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...! इनकार की डर से इज़हार नहीं किया था, प्यार हो बहोत करता था मगर इकरार नहीं किया था... खोल दिए दिल के दरवाजे अरमानों को यूंही शब्दों से बहाया , परिणामों की परवाह किसे थी हम तो चाहते की क्या तुमसे तुम्हारे सिवा...! बड़ी मुश्किल से कायनाथ से चुराकर बड़ी शिद्दत से सिर्फ तुम्हे ही चाहा, दिल पर बड़ा सा पत्थर रखकर अरमानों की श्रृंगार की तरह सजाया. फिर भी तूने समझा ही नहीं और ना ही समझना चाहा हम चाहते ही क्या तुमसे तुम्हारे सिवा.....! Pandhari Varpe 8698361992 ©Varpe Pandhari

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