मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, | हिंदी विचार

"मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में। मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें! सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है। हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद।"

 मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए।

मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। 

अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है।
जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस।
जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में।
मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें!

सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है।

हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद।

मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में। मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें! सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है। हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद।

मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए।

मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है।

अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है।
जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस।
जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझ

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