अकेलापन है ए जिंदगी
इस दौर मे
जहां हर किसी को
सरल समझना गुनाह है
वो जलील करने को वक्त पनाह हैं।
हम यूं ही उन्हें पवित्र मान गुनाह कर देते है।
वो अच्छे बनने के नाटक कर लेते हैं।।
उनके नाटक को भी हम हकीकत माने जाते हैं
उनकी हर चाल को हम वास्तविक माने लेते हैं।।
आखिरकार क्यों न माने हम उनके नाटक को पवित्र
वरना उस में और मुझ में बस इतना ही हैं फ़र्क
की हम उनको अपनो के समान मानते
और वो हमे पागल बनाते।।
©पथ भुला परदेशी
#alone