खामोशियों का कंबल ओढ़ के,सो जा रे मन सुबह, फ़िर से | हिंदी शायरी

"खामोशियों का कंबल ओढ़ के,सो जा रे मन सुबह, फ़िर से बेताब खड़ी हैं ज़िंदगी की चौखट पर उलझनों की, नई फेहरिस्त लेकर... ©ashita pandey बेबाक़"

 खामोशियों का कंबल
ओढ़ के,सो जा
रे मन
सुबह, फ़िर से 
बेताब खड़ी हैं 
ज़िंदगी की चौखट पर 
उलझनों की, 
नई फेहरिस्त लेकर...

©ashita pandey  बेबाक़

खामोशियों का कंबल ओढ़ के,सो जा रे मन सुबह, फ़िर से बेताब खड़ी हैं ज़िंदगी की चौखट पर उलझनों की, नई फेहरिस्त लेकर... ©ashita pandey बेबाक़

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