"इक तस्वीर सी थी वो
संजीदा भी थी शायद
बाप का कांधा बनी
तो मां की ख्वाहिश थी वो।
अरमां के पंख निकले ही थे
कुछ गिद्धों की आंख लगी
पर उजाडा, पैर तोडे
किया उसे क्षत विक्षत
उन दानवों ने उस जान
को किया श्वास विरक्त।।
ऐ नरपिशाच कुछ कर ले
कब तक भागेगा
इन गूंगी आत्माओं का
श्वर इक दिन जागेगा
भस्म होगी तेरी काली रात का राज
तू बस गिन अपनी सांसो को आज।।
©Aavran
"