वो नही आएंगे साहेब मुझे मालूम है,पर फिर भी हर पल तलाशती हैं मेरी आँखें उन्हीं को न जाने क्यूँ ? बरसों हुए नही देखा नही जानता उनकी शख्सियत पर खुद से ज्यादा यकीन उन्हीं पर है न जाने क्यूँ ? क्यूँ मान लेता हूँ उनकी हर बात जो न मानने जैसी होती हैं और वो मेरी कोई भी बात को मानते ही नही और अनसुनी भी नही करते न जाने क्यूँ ?हर बार वो क़रीब आते हैं न जाने दोस्त बनकर ? प्यार बनकर ? पर हर बार दूर चले जाते हैं एक मीठी सी चोट देकर न जाने क्यूँ ?दिल भी सह लेता है हँस कर न जाने क्यूँ ? मैं जानता हूँ हर बार झूँठ बोलते हैं वो फिर भी उनके झूँठ पर एतबार कर लेता हूँ न जाने क्यूँ
©Pawan Dvivedi
#ArabianNight इंतज़ार