मुझे हर रोज़ नया जिस्म मिलता है' मैं हर रोज़ मुहब् | हिंदी Shayari

"मुझे हर रोज़ नया जिस्म मिलता है' मैं हर रोज़ मुहब्बत को तरसता हूं" बे- इल्म की गमों शाम में ' मैं हद से ज्यादा गरजता हूं" बादलों सी बना ली हैं मैंने जिंदगी अपनी" मेरी जरूरत कहीं और है, मैं कहीं और जा के बरसता हूं। ©kessi dhaker"

 मुझे हर रोज़ नया जिस्म मिलता है'
मैं हर रोज़ मुहब्बत को तरसता हूं"
बे- इल्म की गमों शाम में '
मैं हद से ज्यादा गरजता हूं"
बादलों सी बना ली हैं मैंने जिंदगी अपनी"
मेरी जरूरत कहीं और है, मैं कहीं और जा के बरसता हूं।

©kessi dhaker

मुझे हर रोज़ नया जिस्म मिलता है' मैं हर रोज़ मुहब्बत को तरसता हूं" बे- इल्म की गमों शाम में ' मैं हद से ज्यादा गरजता हूं" बादलों सी बना ली हैं मैंने जिंदगी अपनी" मेरी जरूरत कहीं और है, मैं कहीं और जा के बरसता हूं। ©kessi dhaker

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