उम्र के अन्तीम पड़ाव मे
बेटे का इन्तजार कर रही हू
कब आएगा बुढी की आंखें
पत्थाराने लगी है
कब
सांस आश छोड़ दे
रोज रात लालटेन जलाये
तुम्हारा इन्तज़ार कर रही हूं
क्योंकि तुम अक्सर
रात की ट्रेन। से ही
आते हो मेरे हाथों का खाना
खकर सुबह निकल पड़ते हो
जब से तुम्हारी गृहस्थी बसी
मेरा इन्तजार खत्म नहीं हुआ
इन्तजार इतना लम्बा ना रेह जाये
मेरी सांस निकल जाये
©Babita Bucha
#पीड़ा