मैं ढूंढ रहा तुझें मृग तृष्णा सा
प्रेम -विरह की पीड़ प्रिये
तू बन जा कस्तूरी मन की
मैं मन से जोड़ूं मेल प्रिये
किस चौखट फिरूं किस मंदिर में
कहाँ करूँ अरदास प्रिये
मन की आँखे हैं खुली हुई
मैं प्रेमभक्त सूरदास प्रिये
मैं शब्दों में गढ़ता भावों को
जैसे कोई कविराज़ प्रिये
तू समझ सके यदि कुछ शब्दों को
समझूँ इनको साकार प्रिये
मैं प्रेम सफऱ का नन्हा पंछी
तुम मेरा हो आसमान प्रिये
ये बंधन का ऐसा संगम है
जैसे तीर्थ कोई हरिद्वार प्रिये
( सचिन चमोला )
©sachin chamola
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