वो खिड़कियां वो दरवाजें वो पीपल के दरख्ते सब हैं | हिंदी Poetry

"वो खिड़कियां वो दरवाजें वो पीपल के दरख्ते सब हैं अपनी जगह पर इन्हें तुम नहीं दिखते वो कमरा वो बिस्तरा वो चादर की सिलवटें देखती हैं मुझे पर इन्हें तुम नहीं दिखते वो छत जहां पर हम शामें घंटों बिताते थे अब उस छत के बंद दरवाज़ों को तुम नहीं दिखते ©Garima Srivastava"

 वो खिड़कियां वो दरवाजें 
वो पीपल के दरख्ते 
सब हैं अपनी जगह
पर इन्हें तुम नहीं दिखते

वो कमरा वो बिस्तरा 
वो चादर की सिलवटें
देखती हैं मुझे
पर इन्हें तुम नहीं दिखते

वो छत जहां पर हम
शामें घंटों बिताते थे
अब उस छत के बंद 
दरवाज़ों को तुम नहीं दिखते

©Garima Srivastava

वो खिड़कियां वो दरवाजें वो पीपल के दरख्ते सब हैं अपनी जगह पर इन्हें तुम नहीं दिखते वो कमरा वो बिस्तरा वो चादर की सिलवटें देखती हैं मुझे पर इन्हें तुम नहीं दिखते वो छत जहां पर हम शामें घंटों बिताते थे अब उस छत के बंद दरवाज़ों को तुम नहीं दिखते ©Garima Srivastava

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