इक दिन सन्नाटे से गुजरे ,
बिसरे भटके राहों में ,
उजड़े उखड़े सपने बुनते ,
खिसयाते फिर हारों में ,
समय समय के बीज जो बोए,
हमने खुदके अपने खोए ,
रातों में ढूंढे सूरज को ,
चंदा से तो सुबह न होए ,
ओढ़ी चादर मक्कारी की ,
गलत सही ठहराते हुए ,
जिस दिन चमकी गलती खुदकी ,
बैठे रहे पछताते हुए ,
समय खिलाड़ी बहुत अजब है ,
सबका अपना किस्सा है ,
आज है मेरा कल किसी का ,
सबका अपना हिस्सा है ,
उधड़ी होकर चमड़ी बोली ,
अब न जख्म सह पाऊंगी ,
ठोकर खाने खुदको गवाने,
हिम्मत न फिर जुट पाएगी ,
उड़ती चिड़िया कैसे बुनले,
घोसले को आंधी में ,
हम भी गुजरे होते दिन दिन ,
एक सफलता भुनाने में ,
इक दिन सन्नाटे से गुजरे ,
बिसरे भटके राहों में ,
उजड़े उखड़े सपने बुनते ,
खिसयाते फिर हारों में ।।
_ सृजन जैन
©srajan jain
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