इक दिन सन्नाटे से गुजरे , बिसरे भटके राहों में , उ | हिंदी कविता Video

"इक दिन सन्नाटे से गुजरे , बिसरे भटके राहों में , उजड़े उखड़े सपने बुनते , खिसयाते फिर हारों में , समय समय के बीज जो बोए, हमने खुदके अपने खोए , रातों में ढूंढे सूरज को , चंदा से तो सुबह न होए , ओढ़ी चादर मक्कारी की , गलत सही ठहराते हुए , जिस दिन चमकी गलती खुदकी , बैठे रहे पछताते हुए , समय खिलाड़ी बहुत अजब है , सबका अपना किस्सा है , आज है मेरा कल किसी का , सबका अपना हिस्सा है , उधड़ी होकर चमड़ी बोली , अब न जख्म सह पाऊंगी , ठोकर खाने खुदको गवाने, हिम्मत न फिर जुट पाएगी , उड़ती चिड़िया कैसे बुनले, घोसले को आंधी में  , हम भी गुजरे होते दिन दिन , एक सफलता भुनाने में , इक दिन सन्नाटे से गुजरे , बिसरे भटके राहों में , उजड़े उखड़े सपने बुनते , खिसयाते फिर हारों में ।। _ सृजन जैन ©srajan jain "

इक दिन सन्नाटे से गुजरे , बिसरे भटके राहों में , उजड़े उखड़े सपने बुनते , खिसयाते फिर हारों में , समय समय के बीज जो बोए, हमने खुदके अपने खोए , रातों में ढूंढे सूरज को , चंदा से तो सुबह न होए , ओढ़ी चादर मक्कारी की , गलत सही ठहराते हुए , जिस दिन चमकी गलती खुदकी , बैठे रहे पछताते हुए , समय खिलाड़ी बहुत अजब है , सबका अपना किस्सा है , आज है मेरा कल किसी का , सबका अपना हिस्सा है , उधड़ी होकर चमड़ी बोली , अब न जख्म सह पाऊंगी , ठोकर खाने खुदको गवाने, हिम्मत न फिर जुट पाएगी , उड़ती चिड़िया कैसे बुनले, घोसले को आंधी में  , हम भी गुजरे होते दिन दिन , एक सफलता भुनाने में , इक दिन सन्नाटे से गुजरे , बिसरे भटके राहों में , उजड़े उखड़े सपने बुनते , खिसयाते फिर हारों में ।। _ सृजन जैन ©srajan jain

#yogaday

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