किसी अच्छी सी किताब में उतार लाऊं तुम्हें
तुम जैसे हो ही नहीं ठीक वैसा बनाऊं तुम्हें
तुम क्या से क्या हो गये देखते देखते
सोचा इसी बहाने आईना दिखाऊँ तुम्हें
तुम साथ होते तो कुछ और ही बात थी
हाल-ए-दिल अपना क्या बताऊँ तुम्हें
केवल तुम्हारी वफ़ा का जिक्र होगा वहाँ
जहाँ अपने मुताबिक ही देख पाऊँ तुम्हें
काश मेरे तसव्वुर के काबिल हुए होते तुम
मैं क्या से क्या हो जाता क्या समझाऊँ तुम्हें
©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
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