कुदरत के कानून का मुजरिम हूं मैं मैनें विश्वासघात | हिंदी Poetry

"कुदरत के कानून का मुजरिम हूं मैं मैनें विश्वासघात किया है कुदरत से मुंह दिया था कुदरत ने बोलने के लिए आँखें दीं थीं देखने को हसीन सपनें कान दिए थे दूसरों को सुनने के लिए दिमाग था सोचने समझने में लगाने को मैने बोला ह्रदय से सुनी ह्रदय की मैने समझा ह्रदय से समझी ह्रदय की मैनें सोंचा ह्रदय से समझे ह्रदय की मैनें हरेक अपना,सपना देखा ह्रदय से कुछ यूं ! गुनाह किया कुदरत से मुजरिम हूं मैं कुदरत के कानून का ... ऋतेश मिश्र ©Ritesh Mishra"

 कुदरत के कानून का मुजरिम हूं मैं
मैनें विश्वासघात किया है कुदरत से

मुंह दिया था कुदरत ने बोलने के लिए
आँखें दीं थीं देखने को हसीन सपनें 
कान दिए थे दूसरों को सुनने के लिए
दिमाग था सोचने समझने में लगाने को

मैने बोला ह्रदय से सुनी ह्रदय की
मैने समझा ह्रदय से समझी ह्रदय की
मैनें सोंचा ह्रदय से समझे ह्रदय की
मैनें हरेक अपना,सपना देखा ह्रदय से

कुछ यूं ! गुनाह किया कुदरत से
मुजरिम हूं मैं कुदरत के कानून का ...

ऋतेश मिश्र

©Ritesh Mishra

कुदरत के कानून का मुजरिम हूं मैं मैनें विश्वासघात किया है कुदरत से मुंह दिया था कुदरत ने बोलने के लिए आँखें दीं थीं देखने को हसीन सपनें कान दिए थे दूसरों को सुनने के लिए दिमाग था सोचने समझने में लगाने को मैने बोला ह्रदय से सुनी ह्रदय की मैने समझा ह्रदय से समझी ह्रदय की मैनें सोंचा ह्रदय से समझे ह्रदय की मैनें हरेक अपना,सपना देखा ह्रदय से कुछ यूं ! गुनाह किया कुदरत से मुजरिम हूं मैं कुदरत के कानून का ... ऋतेश मिश्र ©Ritesh Mishra

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