Unsplash झूठा दिलासा शायद काली घटाएँ उठी थीं, और | हिंदी शायरी

"Unsplash झूठा दिलासा शायद काली घटाएँ उठी थीं, और खुशनुमा मौसम नहीं था। कुछ भी सोचकर उदास मत होना, मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था। मेरी पलकों के किनारे, शायद यूँ ही शबनम आई थी, कुछ गले में दिक्कत थी, जो मेरी आवाज़ भर आईं थी, तुमने देखा भी होगा, मैंने मुस्कुराते हुए दी विदाई थी। हाथ कमज़ोरी से कांप उठे होंगें, कुछ साँस लेने में दिक्कत आई थी।। थकान जियादा थी, खड़े रहने का दम नहीं था। तुम,कुछ भी सोचकर उदास मत होना, मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था। ©Madhav Awana"

 Unsplash झूठा दिलासा 
शायद काली घटाएँ उठी थीं,
और खुशनुमा मौसम नहीं था।
कुछ भी सोचकर उदास मत होना,
मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था।
मेरी पलकों के किनारे,
शायद यूँ ही शबनम आई थी,
कुछ गले में दिक्कत थी,
जो मेरी आवाज़ भर आईं थी,
तुमने देखा भी होगा,
मैंने मुस्कुराते हुए दी विदाई थी।
हाथ कमज़ोरी से कांप उठे होंगें,
कुछ साँस लेने में दिक्कत आई थी।।
थकान जियादा थी,
खड़े रहने का दम नहीं था।
तुम,कुछ भी सोचकर उदास मत होना,
मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था।

©Madhav Awana

Unsplash झूठा दिलासा शायद काली घटाएँ उठी थीं, और खुशनुमा मौसम नहीं था। कुछ भी सोचकर उदास मत होना, मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था। मेरी पलकों के किनारे, शायद यूँ ही शबनम आई थी, कुछ गले में दिक्कत थी, जो मेरी आवाज़ भर आईं थी, तुमने देखा भी होगा, मैंने मुस्कुराते हुए दी विदाई थी। हाथ कमज़ोरी से कांप उठे होंगें, कुछ साँस लेने में दिक्कत आई थी।। थकान जियादा थी, खड़े रहने का दम नहीं था। तुम,कुछ भी सोचकर उदास मत होना, मुझे तुम्हारे बिछड़ने का ग़म नहीं था। ©Madhav Awana

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