जो हुआ हूँ रुबरु खुद से मै मै अब खुद से ही नफ़रत क | हिंदी कविता

"जो हुआ हूँ रुबरु खुद से मै मै अब खुद से ही नफ़रत करने लगा हूँ एक पीड़ा ये भी है ज्ञान की मै अब मरने की हसरत करने लगा हूँ कोरी है अब मेरे जेहन की दीवार मै उसपर फ़ुर्क़त के रंग भरने लगा हूँ ख़ामोशी के कमरे मे, चीखें क़ैद है मेरी मै मुखौटे और मुरत से जंग करने लगा हूँ ©Sumit Sehrawat"

 जो हुआ हूँ रुबरु खुद से मै
मै अब खुद से ही नफ़रत करने लगा हूँ
एक पीड़ा ये भी है ज्ञान की
मै अब मरने की हसरत करने लगा हूँ
कोरी है अब मेरे जेहन की दीवार
मै उसपर फ़ुर्क़त के रंग भरने लगा हूँ
ख़ामोशी के कमरे मे, चीखें क़ैद है मेरी
मै मुखौटे और मुरत से जंग करने लगा हूँ

©Sumit Sehrawat

जो हुआ हूँ रुबरु खुद से मै मै अब खुद से ही नफ़रत करने लगा हूँ एक पीड़ा ये भी है ज्ञान की मै अब मरने की हसरत करने लगा हूँ कोरी है अब मेरे जेहन की दीवार मै उसपर फ़ुर्क़त के रंग भरने लगा हूँ ख़ामोशी के कमरे मे, चीखें क़ैद है मेरी मै मुखौटे और मुरत से जंग करने लगा हूँ ©Sumit Sehrawat

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