#जंगलों में जाकर
सुकूं मिलता है मुझे
जानवर अक्सर
मेरे #दोस्त हो जाते हैं...
#समंदर कहकहाते हैं
मेरे साथ बैठकर
#पहाड़ मुझसे मिलकर
मोम हो जाते हैं...
#फूल बिछे जाते हैं
राहों में मेरी
#झरने मुझसे मिलकर
बहुत खुश हो जाते हैं...
#परिंदे डाली छोड़
मेरे पास आ बैठते हैं
#नदियां और #दरख़्त
मेरे साथ-साथ गाते हैं...
#भूतों को अक्सर
मैं पसंद आ जाती हूं
#प्रेतों को मेरे किस्से
बहुत लुभाते हैं...
#चाँद मेरी खिड़की पर
रोज दस्तकें देता है
#बादल घुमड़ घुमड़कर
आवाज़ लगाते हैं...
#बारिशें रो पड़ती हैं
मेरी उदासी देखकर
मैं रूठ जाऊं अगर
ये #मौसम मुझे मनाते हैं...
बड़ा #नाज़ आता है
कभी-कभी ख़ुद पर
#इंसाँ इक ना हुआ मेरा
ये सब मुझपर मरे जाते हैं...
ना जाने क्यों लगती है
ये #प्रकृति मुझे अपनी
ना जानें क्यों ये सब
मुझ पर #जां लुटाते हैं !!
-मोनिका
©Ram Yadav
#Nature