लिखने लगा हूँ घर-घर के किस्से ,,,
घर-घर में एक दिन पढ़ा जाऊँगा ll
मेरा देश जो मुझसे अनभिज्ञ है ,,,
कभी उसी देश में सुना जाऊँगा ll
तरसा है लेखन बोहनी की ख़ातिर ,,,
उधारी ही सही पर बिका जाऊँगा ll
कुछ ने कहा लिखो तालियों के लिऐ ,,,
शायद फ़िर में भीड़ में गिना जाऊँगा ll
हंसाने को आयेंगे ओर जायेंगे बहुत ,,,
पर में एक बार आकर रुला जाऊँगा ll
पुनीत एक ख़्वाब देखा है मैंने बताऊं ,,,
मैं पुनीत के आगे कवि लिखा जाऊँगा ll
पुनीत कुमार नैनपुर
©punit shrivas
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