White
कह दो यादों को उनकी की अब याद ना आए,
उनकी यादों से मेरा ज़ख्म हरा होता है।
जिसको चाहा था बड़ी शिद्दत से,
उसको भूलना मुनासिब कहां होता है।।
खुदा माना था उसको फिर मोहब्बत की थी,
फकत ये ना सोचा था, खुदा एक का नही होता है।
कितनी रातें गुजारी है बेख्याली में तेरी,
तुम जो आए सामने फिर सवाल कहां होता है।।
कोशिशें बहुत की छुपा लूं दर्द अपना,
बिन सावन के आंसू छिपाना आसान कहां होता है।।
लाख छू लो बुलंदी फिर भी जुड़े रहना जमीं से तुम,
सलीका इस कदर जीने का सबका कहां होता है।
वो काफ़िर है मोहब्बत की अना के साक्षी,
मुनाफे बिना मोहब्बत का कारोबार कहां चलता है।
©Sakshi Shankhdhar
#good_night