पैरों तले कुचल के रौंद रही है ज़िंदगी फिर बोल रही | हिंदी शायरी

"पैरों तले कुचल के रौंद रही है ज़िंदगी फिर बोल रही है जा जी चाहे दौड़ ले ©Shilpapandya"

 पैरों तले कुचल के रौंद रही है ज़िंदगी
फिर बोल रही है जा जी चाहे दौड़ ले
©Shilpapandya

पैरों तले कुचल के रौंद रही है ज़िंदगी फिर बोल रही है जा जी चाहे दौड़ ले ©Shilpapandya

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