क्या लिखूँ मैं
सोचने की कोशिश में हूँ
क्या लिख दूँ सच में सब ख़्याल
जो हलचल मचाते हैं
क्या लिख दूँ वो सारे जज़्बात
जो धड़कन बढ़ाते हैं
कुछ रिश्तों के बनने बिगड़ने
के किस्से भी तो हैं
क्या उन्हें भी लिख दूँ
या वो पुराने गड़े मुद्दे जिनका ज़िक्र
आया था उस रात उन्हें भी लिख दूँ
क्या लिख दूँ वो माफ़ीनामा भी जो
मांगा था मैंने जब कि गलती तुम्हारी थी
या भूल कर अपने बदन का दर्द
तुम्हें पहले सुलाया था सीने पर रख कर सर
©Piyush Shukla
क्या लिखूँ मैं
सोचने की कोशिश में हूँ
क्या लिख दूँ सच में सब ख़्याल
जो हलचल मचाते हैं
क्या लिख दूँ वो सारे जज़्बात
जो धड़कन बढ़ाते हैं
कुछ रिश्तों के बनने बिगड़ने
के किस्से भी तो हैं