नाज़ है मुझे इन धड़कनों पे
जो तेरे नाम से ये धड़कता है
तेरे आने की खुशबू से
ये सारा आलम महकता है!
तुझें शायर की इक कलाम में पढ़ा है मैंने
हर्फ़ सी ठहरी ख़ुदा के नाम में ढूंढा है मैंने
मेरे सोंचने के मायने बदल दिये हों जैसे
हर इक शय पे ख़ुदा का ज़िक़्र हो जैसे!
बहरहाल शायर तो मैं बारहा कईं सौ सालोँ से था, पर सूरतें थोड़ी अलग थीं।
पहले मैं अपने जज़्बात श्याह कागज़ के टुकडोँ पे बयां कर देता था।
पर अब डेटा और ऍप पे आपका एहतराम कर रहा हूँ। आफ़रीन फरमाइएगा!