खुले गगन में, जहां चाहें मेरा जुनून हो, वहीं मेरी | हिंदी कविता

"खुले गगन में, जहां चाहें मेरा जुनून हो, वहीं मेरी मंज़िल, वहीं मेरा सुकून हो। हवाओं से आगे, जहां सपनों का विस्तार हो, हर पल में जीने का एक नया आधार हो। बादलों के पार, जहां सूरज का प्रकाश हो, हर कदम पे मेरे इरादों का इतिहास हो। ना लगाम की ज़रूरत, ना सहारे का इंतजार, बस विश्वास और हौसला मेरे संग हर बार। कोई दीवार नहीं, ना डर का बसेरा, आज़ादी की राह ही बने मेरा सवेरा। खुले आसमान में, जहां कोई रोक न हो, सपनों के साथ मेरे अरमान भी अनमोल हो। जहां हर गूंज, मेरी जीत का हो सुर , हर उड़ान में दिखे मेरा अनंत नूर। हर कदम, हर पल हो मेरी पहचान, जहां चाह हो मेरी, वहीं मेरा जहान। ©नवनीत ठाकुर"

 खुले गगन में, जहां चाहें मेरा जुनून हो,
वहीं मेरी मंज़िल, वहीं मेरा सुकून हो।
हवाओं से आगे, जहां सपनों का विस्तार हो,
हर पल में जीने का एक नया आधार हो।

बादलों के पार, जहां सूरज का प्रकाश हो,
हर कदम पे मेरे इरादों का इतिहास हो।
ना लगाम की ज़रूरत, ना सहारे का इंतजार,
बस विश्वास और हौसला मेरे संग हर बार।

कोई दीवार नहीं, ना डर का बसेरा,
आज़ादी की राह ही बने मेरा सवेरा।
खुले आसमान में, जहां कोई रोक न हो,
सपनों के साथ मेरे अरमान भी अनमोल हो।

जहां हर गूंज, मेरी जीत का हो सुर ,
हर उड़ान में दिखे मेरा अनंत नूर।
हर कदम, हर पल हो मेरी पहचान,
जहां चाह हो मेरी, वहीं मेरा जहान।

©नवनीत ठाकुर

खुले गगन में, जहां चाहें मेरा जुनून हो, वहीं मेरी मंज़िल, वहीं मेरा सुकून हो। हवाओं से आगे, जहां सपनों का विस्तार हो, हर पल में जीने का एक नया आधार हो। बादलों के पार, जहां सूरज का प्रकाश हो, हर कदम पे मेरे इरादों का इतिहास हो। ना लगाम की ज़रूरत, ना सहारे का इंतजार, बस विश्वास और हौसला मेरे संग हर बार। कोई दीवार नहीं, ना डर का बसेरा, आज़ादी की राह ही बने मेरा सवेरा। खुले आसमान में, जहां कोई रोक न हो, सपनों के साथ मेरे अरमान भी अनमोल हो। जहां हर गूंज, मेरी जीत का हो सुर , हर उड़ान में दिखे मेरा अनंत नूर। हर कदम, हर पल हो मेरी पहचान, जहां चाह हो मेरी, वहीं मेरा जहान। ©नवनीत ठाकुर

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