डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन
डूब गए हैं लोग यहाँ के डूब गया बचपन
छूट गए हैं कोरे पन्ने बचपन के वो खेल
छूट गए हैं खेल तमाशे बचपन की वो रेल
रूठ गई है प्यारी गुडि़या रूठ गए सब मेल
रूठ के देखो बनी शिकहरी जंगल की इक बेल
सूने सूने से हो गए हैं मेरे हरे भरे उपवन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन
टूटी चप्पल के पहिए और डिब्बों की गाडी़
छूट गए सब रिश्ते बारिश में भीगती बाडी़
चार आने में मिलता सब गुडि़या गुड्डे की साडी़
पैसों मे बिकता चाट-साट चूरन से बनती डाढी़
छूट गईं बारिश की बूँदें टूट चुका है तन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन
#DryTree