मुन्तजिर बन बैठी ये पलके क्यों दीदार करना चाहती हैं
छुटे हमसफर से क्यों प्यार करना चाहती है।
ये सब धुआं ही धुआं है जो हमसे लिपट नही सकता
ग़मगीन साये की ये ज़िन्दगी क्यों तेरा ख्याल करना चाहती है।
आफत बन बैठी ये दिल के तराने लफ़्ज़ों के सहारे
होठों की मुस्कान क्यों किसी का शिकार करना चाहती हैं।
भीगे ये पलके आज भी आंखों का तकरार चाहती हैं।
फिर एक बार सजदा कर दिल का इजहार करना चाहती है।
छुटे हमसफर से आज भी प्यार करना चाहती है।
छुटे हमसफर से आज भी प्यार करना चाहती है।।
©Gyan Prakash Yadav
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