वो विजयी था सम्मानि था, अपने बल का अभिमानी था। सीत | हिंदी Poetry

"वो विजयी था सम्मानि था, अपने बल का अभिमानी था। सीता का उसने हरण किया, कुल सहित काल का ग्रास लिया। धर्म मार्ग के पथ पर चल कर , अनल गरल जीवन भर पी कर । रघुपती ने जो मार्ग दिखाया, जन जन ने उसको अपनाया। क्रोध, अहंम, वासना जहाँ हो, जीवन मूल्यों का नाश वहाँ हो । वहीँ पाप अन्याय है रहते, मानवता के मोल को हरते। पहली धूप किरण जो आई, सूरज की लालिमा है छाई। अंधकार का हरण हुआ हैं, जीवन का अनुसरण हुआ है। अधर्म पर धर्म की विजय करके, अंधियारे को हर करके। श्री राम ने ऐसा कार्य किया, मानवता को सन्मार्ग दिया। ©Rishi Ranjan"

 वो विजयी था सम्मानि था,
अपने बल का अभिमानी था।
सीता का उसने हरण किया,
कुल सहित काल का ग्रास लिया।
धर्म मार्ग के पथ पर चल कर ,
अनल गरल जीवन भर पी कर ।
रघुपती ने जो मार्ग दिखाया,
जन जन ने उसको अपनाया।
क्रोध, अहंम, वासना जहाँ हो, 
जीवन मूल्यों का नाश वहाँ हो ।
वहीँ पाप अन्याय है रहते,
मानवता के मोल को हरते।
पहली धूप किरण जो आई, 
सूरज की लालिमा है छाई।
अंधकार का  हरण हुआ हैं, 
जीवन का अनुसरण हुआ है।
अधर्म पर धर्म की विजय करके,
अंधियारे को हर करके।
श्री राम ने ऐसा कार्य किया,
मानवता को सन्मार्ग दिया।

©Rishi Ranjan

वो विजयी था सम्मानि था, अपने बल का अभिमानी था। सीता का उसने हरण किया, कुल सहित काल का ग्रास लिया। धर्म मार्ग के पथ पर चल कर , अनल गरल जीवन भर पी कर । रघुपती ने जो मार्ग दिखाया, जन जन ने उसको अपनाया। क्रोध, अहंम, वासना जहाँ हो, जीवन मूल्यों का नाश वहाँ हो । वहीँ पाप अन्याय है रहते, मानवता के मोल को हरते। पहली धूप किरण जो आई, सूरज की लालिमा है छाई। अंधकार का हरण हुआ हैं, जीवन का अनुसरण हुआ है। अधर्म पर धर्म की विजय करके, अंधियारे को हर करके। श्री राम ने ऐसा कार्य किया, मानवता को सन्मार्ग दिया। ©Rishi Ranjan

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