देख नजारा प्रकृति का ये कितना मन को, लुभाता है यहा | हिंदी कविता

"देख नजारा प्रकृति का ये कितना मन को, लुभाता है यहां पर्वत पर, मेघ भी हवाओं संग, बारिश ले आता है। धरती भी मुस्कुराती हे सोंधी खुशबु हवाओं में महक उठती है। पंछियों की चहक से यह वादियां भी गूंज उठती हे सूरज की किरणें भी अब मोती बनकर‌ झिलमिलाती हैं। ©Manthan's_kalam"

 देख नजारा प्रकृति का ये कितना मन को,
लुभाता है यहां पर्वत पर, मेघ भी हवाओं संग,
बारिश ले आता है। 


धरती  भी  मुस्कुराती  हे
सोंधी  खुशबु  हवाओं  में  महक  उठती  है।

पंछियों  की  चहक  से  यह  वादियां  भी  गूंज  उठती  हे
सूरज  की  किरणें  भी  अब  मोती  बनकर‌  झिलमिलाती  हैं।

©Manthan's_kalam

देख नजारा प्रकृति का ये कितना मन को, लुभाता है यहां पर्वत पर, मेघ भी हवाओं संग, बारिश ले आता है। धरती भी मुस्कुराती हे सोंधी खुशबु हवाओं में महक उठती है। पंछियों की चहक से यह वादियां भी गूंज उठती हे सूरज की किरणें भी अब मोती बनकर‌ झिलमिलाती हैं। ©Manthan's_kalam

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