"ए अजनबी ! ज़रा ठहर जा , हम पहले ही किसी के सताये हुए है ......
लौट जा तु वापस ! मरहम नहीं मैं तेरे दिल का , ये दिल पहले ही गहरे जख्म खाये हुए है ......
मुकम्मल नहीं तेरी मोहब्बत यहाँ , जो ख्वाब तुने हमारे संग सजाये हुए है ......
और सुन ! मोहब्बत नहीं हमारे नसीब में ,इस मामले में हम किस्मत के ठुकराये हुए है ......
©Khamosh Alfaaz ( Rinki )"